पाली: भारत की शास्त्रीय भाषा एवं बुद्ध की धरोहर
- By : Anirban Ganguly
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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के निर्णय पर आज दिनांक 12 नवंबर 2024 दिन मंगलवार को सारनाथ स्थित मूलगंध कुटी विहार में “पाली: भारत की शास्त्रीय भाषा एवं बुद्ध की धरोहर” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
यह आयोजन महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया सारनाथ तथा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के सहयोग से संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम का उद्देश्य पाली भाषा के महत्व और भगवान बुद्ध की सांस्कृतिक विरासत पर चर्चा करना था।
इस अवसर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. अनिर्बान गांगुली उपस्थित रहे। अपने संबोधन में, डॉ. गांगुली ने सर्वप्रथम
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के ऐतिहासिक निर्णय के लिए धन्यवाद और आभार प्रकट किया गया।
उन्होंने कहा कि इस निर्णय से पाली भाषा के संरक्षण और उसके वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार को प्रोत्साहन मिलेगा। भारत की प्राचीन बौद्ध संस्कृति को सशक्त पहचान देने की दिशा में यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर उपस्थित सभी अतिथियों ने प्रधानमंत्री के इस पहल की सराहना की और इसे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण बताया।
इसके पश्चात महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के योगदान पर विस्तार से चर्चा की।
उन्होंने बताया कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, एक महान भारतीय नेता और महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के रूप में, भारत में बौद्ध धर्म और इसकी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए समर्पित प्रयास किए।
उनकी अध्यक्षता के दौरान, उन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार करने और भारत में बौद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने बौद्ध धर्म से जुड़े प्रमुख स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएँ चलाईं। उन्होंने विशेष रूप से बोधगया, जो बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल है, के विकास और संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाई।
डॉ मुखर्जी ने भारतीय युवाओं के बीच बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के प्रति जागरूकता फैलाने और इसके शिक्षाप्रद तत्वों को प्रोत्साहित करने के लिए कई शिक्षात्मक कार्यक्रमों का आयोजन किया। इसके माध्यम से उन्होंने युवाओं को बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के प्रति प्रेरित किया।
इसके साथ ही उनके नेतृत्व में महाबोधि सोसाइटी ने विश्व के अन्य बौद्ध राष्ट्रों के साथ संबंधों को मजबूत किया। उन्होंने जापान, श्रीलंका, और थाईलैंड जैसे देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों का आयोजन कर, भारत को वैश्विक बौद्ध समुदाय का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाने का प्रयास किया।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रयासों के कारण महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया ने बौद्ध धर्म के प्रति भारतीय समाज के नज़रिए में सकारात्मक परिवर्तन लाने का कार्य किया और इसे देश की सांस्कृतिक विरासत के रूप में और अधिक व्यापकता प्रदान की।
कार्यक्रम में शामिल अन्य अतिथियों में मुख्य रूप से भिक्षु एवं महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया सारनाथ केंद्र के प्रभारी भिक्षु वेनेरेबल आर. सुमिथ्थानंदा थेरो, प्रोफेसर हरि दीक्षित, प्रोफेसर रमेश प्रसाद, डॉ कामाख्या नारायण तिवारी, डॉ अरुण कुमार यादव, डॉ ज्ञानादित्य शाक्य, प्रोफेसर पेमा तेनजिन सहित अन्य लोगों ने हिस्सा लिया।
गौरतलब है कि यह सम्मेलन पाली भाषा के प्रसार और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के अध्ययन में रुचि रखने वाले सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर सिद्ध हुआ। महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन द्वारा इस आयोजन के माध्यम से पाली भाषा और बौद्ध विचारधारा की धरोहर को संरक्षित और प्रचारित करने का प्रयास किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर हरिप्रसाद दीक्षित पूर्व संकाय प्रमुख – संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, संचालन प्रवीण श्रीवास्तव एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ संदीप ने किया।